नैतिकता पर विभिन्न पाठ्यक्रम और इसके विस्तार क्षेत्र

☘️नैतिकता (Ethics): यह एक दार्शनिक क्षेत्र है जो दायित्व और गलत-सही की अवधारणाओं, नैतिक सिद्धांतों और नैतिक तर्क की प्रकृति का पता लगाता है। यह नैतिकता, कर्तव्य, और व्यक्तिगत और सामाजिक समाज को नैतिक चुनौतियों को कैसे समझना चाहिए के बारे में सवालों का परीक्षण करता है। ☘️सार्वजनिक डोमेन में नैतिकता ( Ethics in Public…

हुसर्ल का “ईपोके” ( epoche)

बिना ज़्यादा जटिल शब्दों के, हुसर्ल का “ईपोके” ( epoche)एक तरीका है जिससे हम बिना किसी पूर्व ज्ञान के या पूर्वाग्रह के वस्तु को एक नई वस्तु की तरह देखने की कोशिश करते हैं। इससे हम उस विशेष चीज़ को सबकुछ नए दृष्टिकोण से देख पाते हैं, जैसे कि हम उसे पहली बार देख रहे…

हुसर्ल की “ट्रांसडेंटल ईगो” की अवधारणा

☘️हुसर्ल की “ट्रांसडेंटल ईगो” की अवधारणा 1☘️एडमंड हुसर्ल एक जर्मन दार्शनिक थे और वे फिनोमेनोलॉजी नामक दार्शनिक आंदोलन के संस्थापक थे। “ट्रांसडेंटल ईगो” की यह अवधारणा हुसर्ल के दर्शन में महत्वपूर्ण विचार है और यह फिनोमेनोलॉजी के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाता है।”ट्रांसडेंटल ईगो” शब्द मानव चेतना के स्वाधिक, स्वचेतन और स्व व्यवस्थापक पहलु को…

प्रत्यायवाद/ आदर्शवाद (idealism), यथार्थवाद( realism), भौतिकवाद( materialism)

प्रत्यायवाद/ आदर्शवाद ( idealism): अर्थ: आदर्शवाद यह विश्वास है कि दुनिया में प्राथमिक वास्तविकता या सबसे महत्वपूर्ण चीजें भौतिक वस्तुओं के बजाय विचार, सोच या मानसिक अनुभव हैं। उदाहरण: कल्पना कीजिए कि आपके पास एक पसंदीदा किताब है। आदर्शवाद के अनुसार, किसी पुस्तक के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात उसके भौतिक पृष्ठ या आवरण नहीं…

तत्वमीमांसा और सत्ता मीमांसा में क्या अंतर है?

तत्वमीमांसा और सत्ता मीमांसा में क्या अंतर है?तत्वमीमांसा और सत्ता मीमांसा परस्पर संबंधित दार्शनिक अवधारणाएं हैं, जिन्हें अक्सर एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग कर लिया जाता है, लेकिन दर्शन के क्षेत्र में उनके सूक्ष्म अंतर और केंद्र बिंदु समझ लेना जरूरी है।तत्वमीमांसा:तत्वमीमांसा दर्शन की एक शाखा है जो वास्तविकता की प्रकृति, अस्तित्व और जगत…

तत्वमीमांसा”( metaphysics) और “सत्ता- मीमांसा” ( ontology) का शाब्दिक अर्थ क्या है?

“तत्वमीमांसा”( metaphysics) और “सत्ता- मीमांसा” ( ontology) का शाब्दिक अर्थ क्या है?दर्शन के संदर्भ में “तत्वमीमांसा” और “सत्ता मीमांसा” शब्दों की ऐतिहासिक उत्पत्ति और विशिष्ट शाब्दिक अर्थ हैं:तत्वमीमांसा:शब्द “मेटाफिसिक्स/तत्वमीमांसा” की उत्पत्ति प्राचीन यूनानी दर्शन में हुई है। इसे रोड्स(Rhodes) के एंड्रोनिकस द्वारा गढ़ा गया था, जो एक विद्वान थे जिन्होंने अरस्तू के कार्यों को संकलित…

सत्य और वास्तविकता में भेद

आओ जानें ऐसे दो शब्दों के अर्थों में भेद, जिन्हें एक दर्शन शास्त्र के विद्यार्थी को समझना अत्यंत आवश्यक है।सत्य ( truth) और वास्तविकता ( reality) में क्या अंतर है?उत्तर: सत्य और वास्तविकता के बीच अंतर सूक्ष्म हो सकता है, लेकिन वे दुनिया की हमारी समझ और धारणा के विभिन्न पहलुओं को संदर्भित करते हैं:सच:…

मिलिन्द – प्रश्न

सम्राट मीनान्डर और नागसेन का यह प्रसिद्ध संवाद सागलपुर ( वर्तमान स्यालकोट ) मे हुआ था जो उस समय सम्राट मीनान्डर की राजधानी थी । इस ग्रंथ मे राजा मिनान्डर ने भिक्खु नागसेन से अनेक ऐसे प्रशन पूछॆ है जो सीधे मनुष्य के मनोविज्ञान से संबध रखते हैं’मिलिन्द प्रशन ’ में भिक्षु नागसेन ने बुद्ध…

जैन दर्शन में अहिंसा का सिद्धांत

जैन शास्त्रों में अहिंसा जैन धर्म के मूलमंत्र में ही अहिंसा परमो धर्म: – अहिंसा परम (सबसे बड़ा) धर्म कहा गया है। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के लिये जो आन्दोलन चलाया वह काफी सीमा तक अहिंसात्मक था। जैन धर्म में सब जीवों के प्रति संयमपूर्ण व्यवहार अहिंसा है। अहिंसा का…

भारतीय दर्शन में चेतना का सिद्धान्त ( Indian Theories of Consciousness)

INDIAN THEORIES OF CONSCIOUSNESS CBCS, Delhi University, B. A. (HONS.) (DISCIPLINE SPECIFIC COURSE) 6th Semester यूनिट के प्रत्येक टॉपिक को हिन्दी में पढ्ने के लिये, टॉपिक के बाद दिये लिंक पर क्लिक करें। UNIT-I  1. Kaṭhopaniṣad: Chapter. 1 Valli I, II & III; Kaṭhopaniṣad in “Ekadasepansodan”. Ed. by V. S. Sastri, Motilal Banarsidas, Delhi, 1966. कथा…

अर्थक्रियाकारित्व

बौद्ध दर्शन अनुसार अर्थक्रियाकारित्व किसी वस्तु की सत्ता का लक्षण है ‘अर्थक्रियाकारित्व’ अर्थात् किसी कार्य को उत्पन्न करने की शक्ति अर्थात् कार्योत्पादन सामर्थ्य वर्तमान भूत से जन्य या उत्पन्न है अर्थात् भूत वर्तमान को उत्पन्न करने में शक्त या समर्थ है।बौद्धों ने सत्ता का यह लक्षण क्षणिकता की सिद्धि के लिए किया है। • ज्ञान…

धर्मकीर्ति विरचित न्याय बिन्दु

Text of Indian Philosophy, B.A. (Hons) Philosophy, 4th semester, Delhi University न्यायबिन्दु के विषय सम्यक् प्रमाण का महत्व, उसके लक्षणों का विवेचन। Audio- Preeti Jain https://drive.google.com/file/d/1QbRHgsGVACcR3FZ5q6VBjW84WM6yhT18/view?usp=drivesdk

धर्मकीर्ति विरचित न्यायबिन्दु

B.A. (Hons) Philosophy, 4th semester, DUप्रमा, प्रमाण, प्रमेय, प्रमाता, सम्यक् ज्ञान की हिन्दी में व्याख्या- प्रीति जैन https://drive.google.com/file/d/1QNGqSUaAgsbhhRN45HiM4Qfj5ZQbN3ni/view?usp=drivesdk

जैन दर्शन में योग B.A.(P), 4th semester, SEC- Yoga Philosophy

जैन दर्शन में योग के सिद्धांत को समझने के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध सहायक सामग्रीविडियो-1* ‘Yoga in Jainism’ part of the film “History of Yoga”जैन धर्म में योग ( फिल्म “योग का इतिहास” का एक अंश)https://youtu.be/pgpVGWOJuk0 2* “शंका समाधान” प्रोग्राम में जैन मुनि प्रमाणसागर जी द्वारा “जैन दर्शन में  योग व ध्यान”  से संबंधित प्रश्न का आगम समत्त…

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Contact Email: preetijain104@gmail.com

6 thoughts on “

  1. Really it’s very good initiative, specifically for hindi medium students and readers, so I would like to thanks, to dr.preeti Jain. Where ever my need in this, will with you.

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  2. Mamdam aapke pass स्त्री उपेक्षिता बुक मिल सकती हो तो बताइए या किसी के पास हो तो plz contact number send Kar do
    My contact number 9754966866

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